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264... जैन मुद्रा योग की वैज्ञानिक एवं आधुनिक समीक्षा 21. ईश्वर मुद्रा
इस मुद्रा के द्वारा त्रिकालदर्शी परमात्मा का प्रतिबिम्ब दर्शाया जाता है अतः इसे ईश्वर मुद्रा कहते हैं।
उक्त मुद्रा मिथ्यात्व ग्रसितों के दलन एवं नास्तिकवादियों के दर्विचारों का खंडन करने के प्रयोजन से की जाती है। इस मुद्रा प्रभाव से कुमति से ग्रसितजन शान्त हो जाते हैं तथा साधक के मन में ईश्वरीय शक्ति का उद्घाटन होता है।
उपलब्ध प्रति के अनुसार यह मुद्रा जिस गाँव में ईश्वर प्रासाद (जिनालय) होता है उस गाँव में मिथ्यात्वी के स्थान पर की जाती है।
इसका बीज मन्त्र 'ग' है।
ईश्वर मुद्रा विधि
"सौभाग्यमुद्रावत्कृत्वा अंगुष्ठद्वयं तर्जनीद्वयं योगे ईश्वर मुद्रा।"
दोनों हाथों को सौभाग्य मुद्रा की भाँति विरचित करके दोनों अंगूठों और दोनों तर्जनियों का संयोग करने पर ईश्वर मुद्रा बनती है।