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मुद्रा प्रकरण एवं मुद्राविधि में वर्णित मुद्राओं की प्रयोग विधियाँ ...265
सुपरिणाम
• ईश्वर मुद्रा का प्रयोग करने से मूलाधार एवं अनाहत चक्र जागृत होते हैं। यह मुद्रा आन्तरिक ऊर्जा का उत्पादन करती है। इससे जीवन में उदारता, सहकारिता, परमार्थ, कर्त्तव्यपरायणता के भाव जागृत होते हैं।
• दैहिक स्तर पर यह मुद्रा कैन्सर, हड्डी की समस्या, जोड़ों एवं घुटनों की समस्या, शारीरिक कमजोरी, बवासीर, श्वास, छाती, हृदय, फेफड़ों आदि की समस्या में लाभदायी है।
• पृथ्वी एवं वायु तत्त्व में संतुलन स्थापित करते हुए यह मुद्रा परिस्थिति स्वीकार, कलात्मक उमंगों, रसानुभूति एवं कोमल संवेदनाओं को उत्पन्न करती है।
• थायमस एवं प्रजनन ग्रंथि के स्राव को नियंत्रित करते हुए यह मुद्रा कामवासना के विकारों का दमन करती है। रोगों से बच्चों की रक्षा करती है और शरीर के तापक्रम आदि को संतुलित रखती है। 22. अमृत सञ्जीवनी मुद्रा
पुनर्जीवन प्रदान करने वाली शक्ति विशेष को संजीवनी कहते हैं। एक प्रकार का अमृत संजीवनी कहलाता है। कहते हैं कि इस तरह के अमृत सेवन से मृतक भी पुनर्जीवित हो जाता है।
यहाँ संजीवनी से तात्पर्य जीवनदायिनी प्राणशक्ति से है। हमारे जीवन को प्राणवन्त बनाने में श्वास की भूमिका मुख्य है। श्वास गति के प्रवहमान होने से व्यक्ति जीवित रहता है और श्वास गति रुक जाने से मृत माना जाता है। ___इस मुद्रा में नासिका रन्ध्रों से बहने वाली श्वास वायु का आस्वादन करते हैं। वह आस्वादन जिस प्रक्रिया द्वारा किया जाता है उससे शाश्वत अमृत की प्राप्ति होती है। साथ इसी के हतोत्साहित मानव उत्साहित हो सत्कार्य में प्रवृत्त हो जाता है।
उपर्युक्त मुद्रा जलपान के पूर्व की जाती है जिससे पीया जा रहा पानी जीवन के लिए अमृत रूप बने। पानी को अमृत तुल्य माना भी गया है।
इसका बीज मन्त्र 'घ' है।