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विाय
मुद्रा प्रकरण एवं मुद्राविधि में वर्णित मुद्राओं की प्रयोग विधियाँ ...263
मुद्राविधि नामक प्रति के अनुसार यह मुद्रा महामारी के निवारण हेतु की जाती है। महामारी एक संक्रामक रोग है। इसका उपशमन करने के लिए प्रबल शक्ति की आवश्यकता होती है इसलिए शक्ति मुद्रा का प्रयोजन सार्थक सिद्ध होता है।
इस मुद्रा का बीज मन्त्र 'ख' है। विधि
"परस्पराभिमुख हस्ताभ्यां वेणीबंध विधाय प्रसार्य संयोज्य च शेषांगुलिभिर्मुष्टिं बंधयेत् इति शक्तिः- प्रहरणविशेषस्तस्य मुद्रा।"
परस्पर में अभिमुख दोनों हाथों के द्वारा वेणी बंध करके अंगुलियों को प्रसारित करें और पुनः संयोजित कर शेष अंगुलियों से मुट्ठी बांधने पर शक्ति मुद्रा बनती है। यह महामारी जैसे उपद्रव का निवारण करने में विशेष फलदायी है। सुपरिणाम
• शक्ति मुद्रा का प्रयोग आज्ञा, मूलाधार एवं अनाहत चक्र को जागृत करता है। आत्मनियंत्रण, सूक्ष्म दर्शन, सद्भावों के जागरण, भौतिक संसार से पराङ्मुख होने में भी यह मुद्रा विशेष सहयोगी है। इससे साधक शांत, धैर्यशील, एकाग्र एवं मधुर स्वभावी बनता है।
• शारीरिक तौर पर यह मुद्रा एलर्जी, बवासीर, योनि विकार आदि में लाभ देती है।
. आकाश, पृथ्वी एवं वायु तत्व को सक्रिय करते हए यह मुद्रा श्वसन, रक्तसंचरण एवं विसर्जन तंत्र के कार्यों को नियमित एवं नियंत्रित करती है। यह भावों में स्थिरता, दृढ़ता तथा सृजनात्मक एवं कलात्मक कार्यों में रुचि का वर्धन करती है।
पीयूष, थायमस एवं प्रजनन ग्रंथियों के स्राव को संतुलित करते हुए यह मुद्रा शरीर की आन्तरिक हलन-चलन, रक्त शर्करा, रक्तचाप आदि को नियंत्रित रखती है।