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आचारदिनकर में उल्लिखित मुद्रा विधियों का रहस्यपूर्ण विश्लेषण ...203
पीयूष एवं पिनियल ग्रंथि के स्राव को संतुलित करते हुए यह मुद्रा रक्त के दबाव को नियंत्रित करती है और प्रजनन अंगों के विकास को प्रभावित करती है। विषाद, बालों की समस्या, रक्त शर्करा, रक्तचाप आदि से सम्बन्धित विकारों को दूर करने में भी यह सहायक बनती है।
वायु एवं जल तत्त्व को संतुलित कर यह मुद्रा रक्त संचरण एवं प्रजनन सम्बन्धी दूषणों को दूर करती है। सृजनात्मक एवं कलात्मक कार्यों हेतु प्रेरित करती है। इससे हृदय में सद्भावों का विकास होता है। 7. परशु मुद्रा
आचार्य जिनप्रभसूरि रचित विधिमार्गप्रपा में भी परशु मुद्रा का उल्लेख है किन्तु आचार दिनकर में वर्णित परशु मुद्रा का स्वरूप किंचिद भिन्न है। ऐतिहासिक किंवदन्तियों के अनुसार विष्णु का एक अवतार परशुराम था, उस समय वे हमेशा अस्त्र को साथ रखते थे। यह अस्त्र उन्हें भगवान शंकर से प्राप्त हुआ था। भगवान शंकर के ज्येष्ठ पुत्र कार्तिकेय और उनके साथी एक तरफ थे
परशु मुद्रा