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204... जैन मुद्रा योग की वैज्ञानिक एवं आधुनिक समीक्षा
और परशु अकेले थे। दोनों के बीच युद्ध हुआ तब परशु ने उन्हें हरा दिया। भगवान शंकर ने यह सब देख कर एवं उनके शौर्य से प्रभावित होकर उन्हें परशु अस्त्र दिया जो उनके नाम के साथ जुड़ गया।
पुराणों की कथा के अनुसार परशुराम ने इस अस्त्र के प्रभाव से 21 बार क्षत्रियों का वध किया था। प्रतीक रूप में यह मुद्रा आत्मशत्रुओं का हनन करती है । आचार दिनकर के मत से विघ्नों का अपहरण करती है ।
विधि
" आकुञ्चिते दक्षिणहस्ते प्रसारिते भूसंमुखंकृते वामहस्तेन धृते परशु मुद्रा । '
दाएँ हाथ को थोड़ा आकुञ्चित करके तथा बाएँ हाथ को फैलाकर भूमि की तरफ करने से जो मुद्रा निष्पन्न होती है उसे परशु मुद्रा कहते हैं ।
सुपरिणाम
• इस मुद्रा से सम्पूर्ण शरीर प्रभावित होता है । साधक का शरीर रूई की भाँति हल्का और आत्मा बलशाली बनती है।
• प्राण सम्बन्धी अवरोध दूर होते हैं।
• शरीर, मन एवं चेतना स्वस्थ और निर्मल दशा को प्राप्त होती है। इसके अतिरिक्त सुपरिणाम वीर मुद्रा के समान जानने चाहिए।
8. छत्र मुद्रा
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संस्कृत व्युत्पत्ति के अनुसार “छादयतीति अनेन इति छत्र: अर्थात जिसके द्वारा आच्छादित किया जाता है उसे छत्र कहते हैं। छत्र को सुरक्षा का प्रतीक माना गया है। लौकिक दृष्टि से छत्र सर्दी-गर्मी, धूप-वर्षा आदि बाह्य उपद्रवों से बचाता है तथा लोकोत्तर दृष्टि से आत्म गुणों की रक्षा करता है ।
जैन धर्म में यह मुद्रा तीर्थंकर के अतिशय को सूचित करती है। तीर्थंकर पुरुष सदैव तीन छत्र के धारक होते हैं। यह तीर्थंकरों के प्रभुत्व को दर्शाती है। आचार्य वर्धमानसूरि ने कहा है कि छत्र मुद्रा के प्रभाव से तीन लोक की प्रभुता संप्राप्त होती है। अतः आत्मिक संपदा की प्राप्ति निमित्त यह मुद्रा की जाती है।