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________________ 202... जैन मुद्रा योग की वैज्ञानिक एवं आधुनिक समीक्षा प्रार्थना मुद्रा सुपरिणाम • भौतिक स्तर पर इस मुद्रा के द्वारा अंजलि मुद्रा एवं नमस्कार मुद्रा के सभी लाभ हासिल होते हैं। इसके सिवाय मुद्रा स्वरूप के अनुसार स्कन्ध, हाथों के जोड़, पैरों के जोड़, सम्पूर्ण शरीर की मांसपेशियाँ मजबूत बनती हैं। प्रार्थना मुद्रा का प्रयोग करने वाला अनाहत एवं स्वाधिष्ठान चक्र में आई हुई रुकावटों को दूर कर अपनी शक्तियों को जागृत करता है। यह मुद्रा तनाव से जूझने एवं प्रतिकूलताओं से लड़ने की क्षमता जागृत करती है तथा बलिष्ठता, स्फूर्ति, सहकारिता, प्रेम एवं सहयोग की भावना बढ़ाती है। यह मुद्रा खून की कमी, बिस्तर गीला होना, हर्निया, सुस्ती, गुर्दे, गर्भाशय, हृदय आदि से सम्बन्धित समस्याओं का निवारण करती है। • आध्यात्मिक स्तर पर इस मुद्राभ्यास से आन्तरिक शुद्धि होती है। शरीर का शक्ति संस्थान जो अवरुद्ध हो रहा है, दुष्कर्मों से प्रताड़ित हो रहा है वह फिर सक्रिय हो सकता है और उसकी ज्योति प्रज्वलित हो सकती है।
SR No.006254
Book TitleJain Mudra Yog Ki Vaigyanik Evam Adhunik Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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