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विधिमार्गप्रपा में निर्दिष्ट मुद्राओं का सोद्देश्य स्वरूप......185 74. विस्मय मुद्रा
आश्चर्यजनक स्थितियों में विस्मय भाव उत्पन्न होते हैं। जैसे भाव होते हैं वैसी ही मुद्रा बन जाती है। विधिमार्गप्रपा में उल्लिखित विस्मय मुद्रा गूढार्थ को लिए हुए हैं।
अनुसंधान कर्ताओं के अनुसार जब अंजनशलाका (केवलज्ञान कल्याणक) के द्वारा नवीन बिंब में द्रव्य एवं भाव प्राणों का आरोपण कर उसे शुभ मुहूर्त में वेदिका पर स्थापित करते हैं उस समय प्रतिमा के रूप-लावण्य में अतिशय वृद्धि हो जाती है। उस अलौकिक स्वरूप को देखकर साधक का मन विस्मित हो उठता है। उसके आश्चर्य का कोई माप नहीं होता, तब शरीर की भाव भंगिमा भी सहज ही तद्प हो जाती है। यहाँ जिनप्रतिमा के अद्भुत रूप को सूचित करने एवं उनके सौन्दर्य की तुलना में अन्य कोई नहीं इस भाव को व्यक्त करने के उद्देश्य से विस्मय मुद्रा का निर्देश है।
विस्मय मुद्रा