________________
विधिमार्गप्रपा में निर्दिष्ट मुद्राओं का सोद्देश्य स्वरूप......141 अवस्था को प्राप्त करता है जिसके परिणाम स्वरूप पाचन क्रिया के समग्र रसों और स्रावों का समुचित रूप से वर्तन होता है।
• यह मुद्रा थायमस एवं पीयूष ग्रंथि के स्राव को संतुलित करते हुए आन्तरिक दिव्य शक्तियों का जागरण करती है। मनोवृत्तियों को नियंत्रित कर दुर्गुणों को दूर करती है। बालों से संबंधित किसी भी प्रकार की समस्या, अवसाद आदि में लाभ पहुँचाते हुए बालकों के विकास में सहयोगी बनती है।
• आध्यात्मिक दृष्टि से इस मुद्रा का सम्यक प्रयोगकर्ता उच्च आध्यात्मिक स्थिति को प्राप्त करता है।
यह मुद्रा मानसिक एकाग्रता को बढ़ाकर विशिष्ट लब्धियों की सिद्धि में सहयोग करती है।
- चक्र विशेषज्ञों के अनुसार सौभाग्य मुद्रा अनाहत एवं ब्रह्म केन्द्र को कार्यशील करने में सहयोगी बनती है। यह मुद्रा प्रेम एवं भक्ति भाव में भी वृद्धि करती है तथा छल, कपट, सद्कार्यों में अनुत्साह, भय, निर्ममता आदि को कम करती है। विशेष
• एक्यूप्रेशर प्रणाली के अनुसार सौभाग्य मुद्रा में जिस बिन्दु के ऊपर दबाव पड़ता है उससे साँस फूलना, आवाज कमजोर होना, सर्दी लगकर बुखार आना, हृदय रोग, छाती दर्द आदि में न्यूनता आती है।
• यह मुद्रा नब्ज शोधन में सहयोग करती है।
• यह मानसिक उग्रता को घटाते हुए हृदय, धमनी सम्बन्धी रोगों का भी उपचार करती है। 52. सबीज सौभाग्य मुद्रा
बीज का अभिप्राय उस सूक्ष्म सत्ता से है जो सांसारिक प्राणियों के लिए अदृश्य है, चर्म चक्षुओं से अगोचर है। इस मुद्राभ्यास से वह सत्ता ज्ञानगोचर एवं आत्मदृश्य बनती है। ___बीज को मूल भी कहते हैं इस अपेक्षा से यह सर्वसिद्धियों की मुख्य मुद्रा है। ___ बीज को उत्पादन शक्ति का मूल माना गया है। जिस प्रकार जीवाणु अथवा वृक्ष बीज तद्योग्य सामग्री का सहयोग पाकर क्रमश: उत्तरोत्तर विकास करता