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140... जैन मुद्रा योग की वैज्ञानिक एवं आधुनिक समीक्षा
सौभाग्य मुद्रा दोनों हाथों को आमने-सामने करके अंगुलियों को परस्पर गूंथें। फिर दोनों तर्जनी अंगुलियों के द्वारा दोनों अनामिका अंगुलियों को ग्रहण करवाएं तथा मध्यमा अंगुलियों को फैलाकर उनके बीच में दोनों अंगूठों को रखने पर सौभाग्य मुद्रा बनती है। सुपरिणाम
• शारीरिक दृष्टि से यह मुद्रा वायु सम्बन्धी विकारों को नष्ट करने में सक्षम है।
इस मुद्रा से शरीर के समस्त जोड़ों में लचीलापन आता है। यह मुद्रा नाक, कान, गला, मुँह, स्वरतंत्र, हृदय, फेफड़ा, भुजाएँ, रक्त संचार प्रणाली आदि में आए दोषों को दूर करती है। सृजनात्मक एवं सकारात्मक कार्यों में अभिवृद्धि करती है।
यह भौतिक शरीर को स्वस्थता प्रदान करती है। इससे वायुतत्त्व एवं आकाश तत्त्व सम्बन्धी दोष दूर होते हैं। इस मुद्रा के द्वारा मणिपुर चक्र अनावृत्त