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________________ विधिमार्गप्रपा में निर्दिष्ट मुद्राओं का सोद्देश्य स्वरूप......97 गदा मुद्रा बायें हाथ की मुट्ठी के ऊपर दाहिने हाथ की मुट्ठी रखें। फिर मुट्ठियों को शरीर के साथ कुछ ऊपर की ओर उठाने पर गदा मुद्रा बनती है। सुपरिणाम • शारीरिक स्तर पर यह मुद्रा शरीर को पौष्टिकता प्रदान करती हैं। इससे पृथ्वी तत्त्व और अग्नि तत्त्व के असंतुलन से होने वाले रोगों में राहत मिलती है। यह पाचन एवं विसर्जन क्रियाओं को नियंत्रित रखती है। इसी के साथ विभिन्न परिस्थिति को स्वीकार करने एवं उनमें प्रसन्न रहने के गुण का निर्माण करती है। • यह मुद्रा कैन्सर, आर्थराइटिस, प्रजनन, आँख, वायु, पाचन सम्बन्धी समस्याओं के निवारण में अत्यन्त उपयोगी है। • बौद्धिक स्तर पर इससे मनोबल में अभिवृद्धि होती है और यह मस्तिष्क को सदैव क्रियाशील रखने में सहायक बनती है। • आध्यात्मिक स्तर पर साधक षड्पुि पर विजय प्राप्त करता है। इसके निरन्तर प्रयोग से साधक सह अस्तित्व को स्पष्टतः समझ जाता है।
SR No.006254
Book TitleJain Mudra Yog Ki Vaigyanik Evam Adhunik Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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