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96... जैन मुद्रा योग की वैज्ञानिक एवं आधुनिक समीक्षा
साधक में ज्ञान एवं ऊर्जा का प्रस्फुटन करती है। यह मुद्रा उन्मत्तता, विषाद, निराशा, अनुत्साह, आत्महीनता आदि दुर्गुणों का परिष्कार करने में भी सहायक बनती है। विशेष
• एक्यूप्रेशर प्रणाली के अनुसार इस मुद्रा में जिन बिन्दुओं के ऊपर दबाव पड़ता है उससे शरीर की अनावश्यक गर्मी निकल जाती है, फेफड़ें एवं लीवर में शक्ति का संचार होता है, शरीर के मुख्य केन्द्रों की ऊर्जा व्यवस्थित होती है तथा ऐंठन ठीक होती है।
• मुद्रा बिन्दु के उपचार से रक्त सम्बन्धी रोग भी ठीक होते हैं। वह रक्त की केमेस्ट्री (रसायन) को ठीक करती है। श्वास लेने में कठिनाई होने के कारण आक्सीजन की कमी, दौरे पड़ना, लू-लगना आदि रोग भी इससे ठीक होते हैं। 31. गदा मुद्रा
गदा का एक नाम मुद्गर भी है। गदा मुद्रा शक्ति की सूचक है। हनुमान के हाथ में हमेशा गदा रहता है। वे स्वयं तो शक्ति पुंज हैं ही, किन्तु गदा धारण करने से भी शक्तिशाली कहे जाते हैं।
गदा की एक विशेषता है कि वह शरणभूत की रक्षा करता है। सांकेतिक अर्थ के आधार पर कहा जा सकता है कि इस मुद्रा के द्वारा सोलह विद्यादेवियों में सातवीं काली नामक विद्यादेवी भी उसके आश्रितों की पूर्ण रूप से सुरक्षा करती है।
गदा, दुष्ट तत्त्वों को भयभीत करने का अमोघ शस्त्र है। अत: इसके माध्यम से विषम स्थितियों का निराकरण माना गया है एवं अनुकूल वातावरण उपस्थित किया जाता है ताकि पूजा-उपासना के सभी आयाम विधिवत सम्पन्न किये जा सकें।
निष्कर्ष रूप में गदा मुद्रा आत्म शक्तियों को संगृहीत करने एवं उनका सदुपयोग करने के भाव से की जाती है। विधि
“वाम हस्तमुष्टेरुपरि दक्षिणमुष्टिं कृत्वा गोत्रेण सह किंचिदुन्नामयेदिति गदामुद्रा।"