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विधिमार्गप्रपा में निर्दिष्ट मुद्राओं का सोद्देश्य स्वरूप......95
पन्न मुद्रा सुपरिणाम
• शारीरिक दृष्टि से रचनात्मक एवं क्रियात्मक शक्ति प्राप्त होती है। इस मुद्रा से अग्नि तत्त्व एवं आकाश तत्त्व संतुलित रहते हैं तथा यह आन्तरिक ऊर्जा का अनुभव करवाकर जीवन प्रदान करती है। इससे नाक, कान, गला, मुँह आदि से सम्बन्धित समस्याओं एवं श्वसन, पाचन सम्बन्धी समस्याओं का निवारण होता है। जिससे थायरॉइड और पेराथायरॉइड ग्रंथियों के स्राव नियन्त्रित रहते हैं।
• भौतिक स्तर पर यह मुद्रा पाचनतंत्र, यकृत, चयापचय, पित्ताशय, तिल्ली, पाचक ग्रंथि को संयोजित करती है। पार्किन्सन्स रोग, मस्तिष्क की समस्या, पुरानी बीमारी आदि के निवारण में भी यह सहायक बनती है।
• मानसिक दृष्टि से यह मुद्रा बौद्धिक चंचलता को शान्त करते हुए मस्तिष्क को सदैव क्रियाशील रखती है।
• आध्यात्मिक दृष्टि से इस मुद्रा के द्वारा काम-क्रोध पर विजय प्राप्त होती है। यह मुद्रा धारण करने से मणिपुर एवं ब्रह्मचक्र सक्रिय होते हैं तथा