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विधिमार्गप्रपा में निर्दिष्ट मुद्राओं का सोद्देश्य स्वरूप......89
28. वज्र मुद्रा
वज्र एक प्रकार का शस्त्र कहलाता है। संस्कृत कोश में वज्र शब्द के अनेक अर्थ हैं, उनमें इन्द्र के शस्त्र को भी वज्र कहा गया है। यह अर्थ अधिक उपयुक्त मालूम होता है। इन्द्र सभी देवों में सर्वाधिक शक्तिशाली और समृद्धि युक्त माने जाते हैं। इसी कारण उनका शस्त्र भी अन्यों की तुलना में श्रेष्ठ होता है।
शस्त्र के दो स्वरूप होते हैं। वह किसी की सुरक्षा करता है तो किसी का संहार भी। यहाँ वज्र अस्त्र के दोनों अर्थ ग्राह्य हो सकते हैं। जैसे कि इन्द्र के शस्त्र को अमोघ शस्त्र कहते हैं, उसे किसी पर प्रक्षेपित किया जाये तो वह बच नहीं सकता। इसका निशाना कभी चूकता नहीं, सीधा आघात करता है। इस मुद्रा को प्रदर्शित करने से विरोधी तत्त्व दूर से ही लौट जाते हैं। इस तरह वज्र मुद्रा साधक के लिए रक्षा कवच का कार्य करती है तो अन्य देवों को भयभीत भी करती है। ___अत: वज्र मुद्रा साधकों के संरक्षण एवं आसुरी शक्तियों के निवारण हेतु की जाती है।
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वज मुद्रा