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विधिमार्गप्रपा में निर्दिष्ट मुद्राओं का सोद्देश्य स्वरूप......87 ही बढ़ाने वाले हैं जबकि विशुद्ध आत्मा का विशुद्ध आत्मा (परमात्मा) से होने वाला बंधन उसे अजर-अमर पद की प्राप्ति करवाता है। ___ इस तरह श्रृंखला मुद्रा विविध दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण सिद्ध होती है। इस मुद्रा का मुख्य लक्ष्य बाह्य मन को अन्तर्मन से संयुक्त करना है। विधि ___ "हस्तद्वयेनांगुष्ठतर्जनीभ्यां वलके विधाय परस्परान्तः प्रवेशनेन श्रृंखलामुद्रा।" ___ दोनों हाथों के अंगूठों और तर्जनियों को झुकाकर उनका परस्पर में एक दूसरे के भीतर प्रवेश करवाने पर श्रृंखला मुद्रा बनती है।
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श्रृंखला मुद्रा सुपरिणाम
• शारीरिक स्तर पर मधुमेह, पाचन समस्या, कैन्सर, लीवर समस्या, कोष्ठबद्धता, बदबूदार श्वास, शरीर में गन्ध, अल्सर, प्रजनन तंत्र आदि से सम्बन्धित समस्याओं के निवारण में यह मुद्रा विशेष रूप से सहायक बनती है।