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________________ 86... जैन मुद्रा योग की वैज्ञानिक एवं आधुनिक समीक्षा तथा इस तत्त्व की अधिकता या न्यूनता से उत्पन्न होने वाले रोगों का शमन होता है। इससे शरीर में गर्मी बढ़ती है अतः ठंड के दिनों में राहत मिलती है। इस मुद्रा की गर्मी से खांसी, जुकाम, सायनस, अस्थमा, टी.बी. आदि सर्दी संबंधी रोग दूर होते हैं। ऋतु परिवर्तन से जो तकलीफें होती हैं उसमें राहत मिलती है। यह मुद्रा रक्त शोधन में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। • आध्यात्मिक दृष्टि से यह मुद्रा ब्रह्मचर्य पालन में सहयोग करती है। इससे आत्म शक्ति का संग्रह होता है तथा स्वाधिष्ठान और मणिपुर चक्र अनावृत्त होने से उसके सभी फायदे होते हैं। विशेष • एक्यूप्रेशर विशेषज्ञों एवं योगाचार्यों के अनुसार इससे स्त्री सम्बन्धी समस्याओं, मूत्राशय सम्बन्धी तकलीफों, जननेन्द्रिय सम्बन्धी रोगों का निवारण होता है। • इस मुद्रा के दाब बिन्दुओं से जकड़ी हुई गर्दन, अंगुलियों का सूनापन, गठिया आदि रोगों का सम्यक उपचार होता है। 27. श्रृंखला मुद्रा श्रृंखला बेड़ी को कहते हैं। सामान्यत: बेड़ी बाँधने का कार्य करती है। यहाँ श्रृंखला मुद्रा से तात्पर्य आभ्यन्तर बंधन से है। यह मुद्रा सांकेतिक रूप में बाह्य दशा से आभ्यन्तर दशा की ओर अभिमुख होने की प्रेरणा देती है, आत्म स्वभाव से बंधे रहने का संकेत करती है तथा स्वयं के अस्तित्व से परिचित होने का संदेश देती है। __जैसे सांकल से बंधी हुई श्रृंखला किसी वस्तु के बांधने में उपयोगी बनती है वैसे ही बंधा (सधा) हुआ मन आत्मा को परमात्म तत्त्व से जोड़ने का कार्य करता है। व्यक्ति का मन प्रायः विश्रृंखल रहता है ऐसी स्थिति में श्रृंखला मुद्रा उसे जोड़ने में मदद करती है। ___ चित्र में दर्शाये गए मुद्रा स्वरूप को देखकर यह विचार भी उत्पन्न होता है कि हम सभी बाह्य राग-द्वेष परिवार-कुटुम्ब आदि बंधनों से बंधे हुए हैं, लेकिन इन बन्धनों का कोई अर्थ नहीं है। ये सभी बंधन अनन्त संसार की परम्परा को
SR No.006254
Book TitleJain Mudra Yog Ki Vaigyanik Evam Adhunik Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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