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40... जैन मुद्रा योग की वैज्ञानिक एवं आधुनिक समीक्षा
• आध्यात्मिक स्तर पर यह मुद्रा आज्ञाचक्र की जागृति में सहायक होती है जिससे साधक धारणा से ध्यान की ओर अग्रसर होता है। इस मुद्राभ्यास से थायरॉइड ग्रन्थि सक्रिय होकर कण्ठ विकारों को दूर करती है। व्यक्ति वाक्सिद्धि प्राप्त कर सकता है। यह मुद्रा इड़ा. एवं पिंगला के प्रवाह को संतुलित करती हुई सुषुम्ना को जागृत करने में सहयोग करती है। इस मुद्रा का सम्यक प्रयोग करने वाला साधक शास्त्र का ज्ञाता एवं समदर्शी होकर अपूर्व सिद्धियाँ प्राप्त कर लेता है। विशेष
• इस मुद्रा को बनाते समय द्वयांगुष्ठों को मस्तक से संस्पर्शित करवाया जाता है अत: इसे शिरोमुद्रा कहते हैं।
• शिरोमुद्रा के द्वारा मस्तक का कवच किया जाता है जिसके प्रभाव से किसी तरह की दुष्टशक्ति इस अंग को क्षति नहीं पहुँचा सकती।
• एक्यूप्रेशर मेरिडियनोलोजी के अनुसार इससे सिरदर्द, माइग्रेन, चक्कर आना आदि मस्तिष्कीय रोगों का उपचार होता है। 5. शिखा मुद्रा
शिखा चोटी को कहते हैं। भारतीय परम्परा में शिखा का अत्यधिक महत्त्व है। योग विज्ञान में शिखा स्थान को ज्ञानकेन्द्र कहा गया है। यह चैतन्य शरीर का सबसे बड़ा केन्द्र है। मनोजगत की समस्त वृत्तियाँ ज्ञान केन्द्र के माध्यम से अभिव्यक्त होती हैं। सूक्ष्म शरीर से उतरने वाली शक्ति या उतरने वाला चैतन्य मस्तिष्क के माध्यम से स्थूल शरीर या जागृत मन में उतरता है। हमारी बुद्धि, स्मृति, चिन्तनशक्ति आदि इसी केन्द्र में है। इन्द्रियों के सारे संवेदन भी यहीं अनुभत होते हैं। इन्द्रिय संवेदनाओं के सारे केन्द्र मस्तिष्क में हैं, जैसे आँख देखती है पर उसके संवेदन का केन्द्र आँख के पास नहीं है, वह मस्तिष्क में है। जीभ स्वाद लेती है किन्तु उसका संवेदन केन्द्र मस्तिष्क में है अत: जीभ, कान,
आँख पर नियंत्रण की आवश्यकता नहीं है। शरीर का संचालन मस्तिष्क द्वारा होता है इसलिए मस्तिष्क को संतुलित रखना चाहिए।
केन्द्रीय नाड़ी संस्थान का भी यह प्रमुख स्थान है। लघु मस्तिष्क, बृहद मस्तिष्क एवं पश्च मस्तिष्क के विभिन्न हिस्से ज्ञानकेन्द्र से सम्बद्ध हैं।