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विधिमार्गप्रपा में निर्दिष्ट मुद्राओं का सोद्देश्य स्वरूप......41 शिखा मुद्रा तत्स्थानीय अंगों का संरक्षण एवं मानसिक ज्ञान (केवलज्ञान) की प्राप्ति हेतु की जाती है।
विधि
___ "पूर्ववन्मुष्टीबद्धा तर्जन्यौ प्रसारयेदिति शिखा मुद्रा।"
हृदय मुद्रा के समान ही दोनों हाथों की बंधी हुई मुट्ठी में से तर्जनी अंगुलियों को प्रसारित करना शिखा मुद्रा है।
शिखा मुद्रा सुपरिणाम
• शारीरिक दृष्टि से इस मुद्रा के प्रयोग से मस्तिष्क का मूलभाग (शिखा भाग) प्रभावित होता है। इससे सूक्ष्म ज्ञान की प्राप्ति होती है।
योगी पुरुषों के अनुसार इस मुद्रा के द्वारा लघु मस्तक सक्रिय होकर विशिष्ट ज्ञान की प्राप्ति में सहयोग करता है।
इस मुद्रा में अग्नितत्त्व (अंगूठों) का पारस्परिक संयोग उस तत्त्व को संतुलित करता है।