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________________ भरतमुनि रचित नाट्य शास्त्र की मुद्राओं का स्वरूप... ...33 एक हाथ से की जाने वाली यह मुद्रा अधिकतर सीधे हाथ से दिखाई जाती है। यह ध्वजा किसी को पराजित करने की, विघ्न निवारण की अथवा विवाद समाप्ति की सूचक है तथा इस मुद्रा का आकार अभय मुद्रा के समान है। प्रथम विधि दायें हाथ की अंगुलियों और अंगूठे को ऊपर की ओर उठाते हुए फैलायें, तत्पश्चात अंगलियों को समान रूप से स्थिर रखते हए किंचित झकायें तथा हाथ को ढ़ीला एवं हथेली को सामने की ओर रखने से पताका मुद्रा बनती है। लाभ नाट्यकला में अभिनय दर्शाने हेतु जिन मुद्राओं का प्रयोग किया जाता है वे व्यक्ति के मनोजगत एवं सूक्ष्म शरीर को स्वाभाविक रूप से प्रभावित करती हैं। हमारे जीवन विकास में उनके सुपरिणाम क्या हो सकते हैं और भावनात्मक स्तर को ऊँचा उठाने में उनका योगदान किस तरह पताका मुद्रा-1 है? अध्याय-1 में इस सम्बन्धी सम्यक निरूपण किया गया है। तदनुसार प्रत्येक नाट्य मुद्रा से जो चक्र या केन्द्र आदि प्रभावित होते हैं उनके सुप्रभाव समझ लेने चाहिए। यहाँ प्रभावित होने वाले चक्र आदि का नामोल्लेख मात्र किया जायेगा। यह मुद्रा छाती के स्तर पर धारण की जाती है। चक्र- मूलाधार एवं मणिपुर चक्र तत्त्व- पृथ्वी एवं अग्नि तत्त्व प्रन्थि
SR No.006253
Book TitleNatya Mudrao Ka Manovaigyanik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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