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________________ ...... . 000 शिल्पकला एवं मूर्तिकला में प्राप्त हस्त मुद्राएँ......321 पताका हस्त मुद्रा (रेखा चित्र 8) इस मुद्रा में हाथ की सभी अंगुलियाँ सम और फैली हुई तथा अंगूठा तर्जनी के मूल में कुंचित रहता है। भरहुत से प्राप्त एक देवता की मूर्ति में (प्र.श.ई.पू.) बायां हाथ पताका हस्त मुद्रा में पहचाना गया है।49 अर्धपताक हस्त मुद्रा जहाँ हाथ की कनिष्ठिका और अनामिका सीधी तथा शेष अंगुलियाँ और अंगूठा हथेली तरफ झुके हुये हों, तो अर्धपताक हस्त मुद्रा बनती है। खजुराहों से प्राप्त एक स्त्री मूर्ति रेखा चित्र-8 (11वीं शती) का दाहिना हाथ अर्धपताक हस्त मुद्रा में है।50 त्रिपताक हस्त मुद्रा दायें हाथ की तर्जनी और अंगूठे के अग्रभाग स्पर्शित तथा शेष अंगुलियाँ ऊर्ध्व प्रसरित होने पर त्रिपताक हस्त मुद्रा बनती है। कपिशा से प्राप्त (प्र.शती) एक दन्त फलक पर अंकित अशोक दोहद के दृश्य में नायिका का दाहिना हाथ सामने की ओर बढ़ा हुआ त्रिपताक मुद्रा प्रदर्शित करता है।51 मौनव्रत मुद्रा (रेखा चित्र 9, छवि चित्र 8) एक हाथ की तर्जनी होठों के पास ऊपर उठी हुई स्थित होने पर एक विशेष मुद्रा बनती है इसे बनर्जी ने मौनव्रत मुद्रा पहचाना है अत: उन्होंने खजुराहों से प्राप्त विष्णु की मूर्ति को मौनव्रतिन विष्णु नाम दिया है।52 ___महोली से प्राप्त पान गोष्ठी के एक फलक पर पुरुष की एक आकृति का दाहिना हाथ होठों के पास तर्जनी रखे प्रदर्शित है। सम्भवतः वह भी मौन में रहने का संकेत कर रहा है।53
SR No.006253
Book TitleNatya Mudrao Ka Manovaigyanik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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