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312... नाट्य मुद्राओं का एक मनोवैज्ञानिक अनुशीलन
9. उत्तरबोधि मुद्रा परम ज्ञान की मुद्रा | 12
आर. एस. गुप्ते ने अपनी लिखित पुस्तक " आइकोनोग्राफी ऑफ दि हिन्दूज, बौद्धिस्ट और जैन" में हस्त मुद्राओं के अन्तर्गत अंजली, भूमिस्पर्श, भूतडामर, बुद्धंश्रमण, अभय, हरिण, ध्यान, धर्मचक्र, गजहस्त या दण्डहस्त, कटक हस्त या सिंहकर्ण, कट्यवलम्बित, कर्तरीहस्त सूचीहस्त, तर्जनी, क्षेपण, नमस्कार, तर्जन, वितर्क, विस्मय, वज्रहुंकार, वरद उत्तराबोधि आदि मुद्राओं का सचित्र वर्णन किया है। 13
प्रसिद्ध वास्तुशास्त्र के विशेषज्ञ प्रभाशंकर ने दीपार्णव में भारतीय शिल्प में प्रचलित नौ प्रमुख हस्त मुद्राओं का सचित्र वर्णन किया है - 1. ज्ञान मुद्रा, 2. व्याख्यान मुद्रा 3. कटक मुद्रा 4. वरद मुद्रा 5. तर्जनी मुद्रा 6. अभय मुद्रा 7. गजदण्ड मुद्रा 8. सूची मुद्रा और 9. कट्यवलम्बित मुद्रा | 14
आधुनिक विद्वानों में वासुदेवशरण अग्रवाल ने भारतीय कला नामक पुस्तक में प्रारम्भिक युग से लेकर तीसरी ईसवी शती तक की मूर्तिकला में उपलब्ध विशिष्ट मुद्राओं को पहचाना है तथा उन मुद्राओं का परम्परागत नामों के साथ उल्लेख भी किया है।
वासुदेवशरण के अनुसार सिन्धुघाटी की शिल्प सामग्री ( लगभग 2500 ई.पू. -1800 ई.पू.) में अंकित मुद्राओं का वर्णन इस प्रकार है
• मोहनजोदड़ों से प्राप्त घीया पत्थर की एक पुरूष मूर्ति में उसके हाथ घुटने पर टिके हैं जो जानु - अवलम्बित मुद्रा के प्रतीक माने गये हैं।
• हड़प्पा से प्राप्त धूमैले पाषाण की एक मूर्ति में नृत्यमुद्रा पहचानी गई है जिसमें सम्पूर्ण शरीर का भाग दाहिने पैर पर है और बायां पैर दायीं तरफ घूमा हुआ प्रतीत होता है। 15
• मोहनजोदड़ों की एक ताम्र मूर्ति नर्तकी की है जिसके हाथ को लताहस्त या कट्यवलम्बित हस्त मुद्रा में पहचाना गया है। 16
• सिन्धु सभ्यता में उपलब्ध मुहरों में एक मुहर पर पशुपति को पहचाना गया है जो पालथी लगाकर हाथों को जानु पर रखे हुए हैं इसे पर्यंकबन्ध आसन मुद्रा के रूप पहचाना गया है।17
मौर्यकालीन (325-184 ई. पू.) कई यक्ष मूर्तियों में अभय - मुद्रा की
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