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शिल्पकला एवं मूर्तिकला में प्राप्त हस्त मुद्राएँ......313
पहचान की गई है। 18
• भरहुत (दूसरी शती ई. पू.) के एक दृश्य में राजा अजातशत्रु को हाथी से उतर कर वज्रासन की पूजा अंजली मुद्रा में करते हुए पहचाना गया है। 19 • जुन्नार के चैत्यग्रह मुहार में लक्ष्मी देवी की मूर्ति में दाहिना हाथ अभय में तथा बायां हाथ कट्यवलिम्बित मुद्रा में है। पार्श्व में दो दंपति अंजलीमुद्रा में खड़े हैं।
मुद्रा
• मथुरा की कुषाण कला में जैन तीर्थंकरों की दो प्रकार की मूर्तियों में एक खड़ी हुई तथा दूसरी बैठी मुद्रा में है। खड़ी मूर्तियाँ कायोत्सर्ग मुद्रा में एवं उनके हाथ लताहस्त मुद्रा में स्थित है। बैठी हुई मूर्तियाँ पद्मासन-ध्यानमुद्रा में है। 20
• मथुरा कला में लक्ष्मी की एक खड़ी मूर्ति में देवी अपने बाएं हाथ से दाहिने स्तन को दबाकर दूध की धारा बहा रही है इसे दुद्धाधारिणी मुद्रा के रूप में पहचाना गया है।21
• मथुरा के जैन आयाग पट्टों पर पद्मासन और ध्यान मुद्रा में तीन तीर्थंकरों की पहचान की गई है। 22
• एक सरस्वती की मूर्ति का दायां हाथ अभय मुद्रा में है। 23
• गन्धार की शिल्पकला में अभय मुद्रा, ध्यान मुद्रा, धर्मचक्र - प्रवर्त्तनमुद्रा, पद्मासन आदि की पहचान की गई है | 24
आन्ध्र सातवाहन कालीन नागार्जुन कोंड से प्राप्त एक पट्ट पर तीन देवता की आकृतियाँ अंजली मुद्रा में प्रतीक्षारत दिखाई गई है।
कपिला वात्स्यायन ने भारतीय कला के विभिन्न युगों में प्रदर्शित देवी और देवताओं की विभिन्न आकृतियों में आसन, हस्त मुद्रा, करण, नृत्यमुद्रा आदि की पहचान एवं व्याख्या करने का प्रयास किया है। उनके द्वारा किया गया इस विषयक अध्ययन अलभ्य सामग्री प्रस्तुत करता है। 25
ध्यातव्य है कि भारतीय शिल्पकला में देवी-देवता आदि के अंकनों में भी विभिन्न मुद्राएँ दिखाई देती हैं। मूर्तिशास्त्र के आधुनिक विद्वानों द्वारा दिये गये दिशा निर्देश के आधार पर उक्त विवरण इस प्रकार द्रष्टव्य है
अभयहस्त मुद्रा (रेखा चित्र 1, 2, छवि चित्र 1)
दाहिना हाथ ऊपर की ओर उठा हुआ, अंगुलियाँ सटी हुई एवं कुछ झुकी हुई तथा हथेली सामने की ओर हो तो उसे अभय हस्त मुद्रा कहते हैं। 26 कुषाण