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________________ 298... नाट्य मुद्राओं का एक मनोवैज्ञानिक अनुशीलन लाभ चक्र- मूलाधार एवं सहस्रार चक्र तत्त्व- अग्नि एवं आकाश तत्त्व ग्रन्थि- एड्रीनल, पैन्क्रियाज एवं पिनियल ग्रन्थि केन्द्र- तैजस एवं ज्योति केन्द्र विशेष प्रभावित अंग-यकृत, तिल्ली, आँतें, नाड़ी तंत्र, पाचन तंत्र, आंख, एवं ऊपरी मस्तिष्क 7. परशुरामावतार मुद्रा परशु कुल्हाड़ी को कहते हैं। भगवान विष्णु का छठवाँ परशुराम अवतार माना जाता है। इस अवतार के समय इनके हाथ में सदैव परशु अस्त्र रहता था अत: इन्हें परशुराम कहा जाने लगा। पुराणकार कहते हैं परशुराम जमदग्नि ऋषि के पुत्र थे, इन्होंने 21 बार क्षत्रियों का वध किया था। परशुराम को परम आयु का एवं युद्ध में उनके समक्ष कोई ठहर न सके ऐसा वरदान प्राप्त था। यह मुद्रा विष्णु के दस अवतारों में परशुराम अवतार को सूचित करती है। विधि दायीं हथेली बाहर की तरफ रहें। तर्जनी, मध्यमा और अंगूठा एक साथ ऊपर की ओर फैले हुए तथा अनामिका और कनिष्ठिका हथेली के भीतर मुड़ी हुई रहें। बायां हाथ शिथिलता के साथ पार्श्वभाग में लटका हुआ, हथेली का पृष्ठ भाग कुल्हे पर, अंगुलियाँ सामने की परशुरामावतार मुद्रा
SR No.006253
Book TitleNatya Mudrao Ka Manovaigyanik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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