________________
भारतीय परम्परा में प्रचलित मुद्राओं की विधि एवं उद्देश्य......297 6. नरसिंहावतार मुद्रा
भगवान विष्णु का चौथा अवतार नरसिंह कहलाता है। हरिवंश पुराण के अनुसार सत्ययुग में हिरण्य कश्यप ने घोर तपस्या करके ब्रह्मा से वरदान मांगा कि वह देव, दानव, असुर, राक्षस या मनुष्य किसी के हाथों से नहीं मारा जा सके, किसी अस्त्र-शस्त्र द्वारा अथवा स्वर्ग-पाताल लोक में, अथवा दिन-रात में, अथवा भवन-अरण्य में भी मृत्यु को प्राप्त न हो सकें। इस प्रकार का वरदान प्राप्त हो जाने पर कश्यप दैत्य अत्यन्त प्रबल हो उठा, तब उसके विनाश के लिए भगवान विष्णु ने नृसिंह अवतार धारण किया था।
इस नाट्य मुद्रा को दोनों हाथों से करते हैं। विधि
दायीं हथेली स्वयं की ओर अभिमुख रहे। तर्जनी, मध्यमा, कनिष्ठिका
और अंगूठा एक साथ ऊपर उठे हुए तथा अनामिका हथेली के भीतर मुड़ी हुई रहे।
बायीं हथेली भी सामने की ओर स्थिर, तर्जनी और कनिष्ठिका ऊपर की
ओर सीधी फैली हुई, मध्यमा और अनामिका हथेली तरफ मुड़ी हुई तथा
नरसिंहावतार मुद्रा अंगूठे का प्रथम पोर मध्यमा और अनामिका के प्रथम पोर से स्पर्श करता हुआ रहने पर नरसिंह अवतार मुद्रा बनती है।