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296... नाट्य मुद्राओं का एक मनोवैज्ञानिक अनुशीलन
5. मत्स्यावतार मुद्रा
विष्णु के दस अवतारों में पहला मत्स्य अवतार माना जाता है। यह अवतार सतयुग में हुआ था। इसके नीचे का अंग रोहु मछली के समान और रंग श्याम था। इसके सिर पर सींग थे, चार हाथ थे, छाती पर लक्ष्मी थी और सारे शरीर में कमल के चिह्न थे।
पुराणों के अनुसार यह अवतार संसार प्रलय के समय विष्णु ने मनु की रक्षा के लिए धारण किया था।
AD यह नाट्य मुद्रा विष्णु के इसी मत्स्य अवतार की सूचक है। विधि
दोनों हथेलियाँ नीचे की तरफ, अंगुलियाँ एक साथ बाहर की ओर फैली हुई, और अंगूठा 90° कोण पर रहें। तत्पश्चात दायीं हथेली को बायीं के ऊपर रखें। उसके बाद अंगुलियों को सामने
मत्स्यावतार मुद्रा की ओर अभिमुख करके अनामिका अंगुली को हथेली की तरफ मोड़ने पर मत्स्यावतार मुद्रा बनती है। लाभ __चक्र- विशुद्धि, आज्ञा, एवं सहस्रार चक्र तत्त्व- वायु एवं आकाश तत्त्व केन्द्र- विशुद्धि, ज्योति एवं ज्ञान केन्द्र प्रन्थि- थायरॉइड, पेराथायरॉइड, पिनियल एवं पीयूष ग्रन्थि विशेष प्रभावित अंग- नाक, कान, गला, मुँह, स्वर यंत्र, मस्तिष्क, आँखें एवं स्नायु तंत्र।