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भारतीय परम्परा में प्रचलित मुद्राओं की विधि एवं उद्देश्य 295
भुजाएं, रक्त संचरण तंत्र, नाड़ी तंत्र, पाचन तंत्र, यकृत, तिल्ली, आँतें, आँख एवं ऊपरी मस्तिष्क ।
4. कूर्मावतार मुद्रा
नाटक आदि में दोनों हाथों से धारण की जाने वाली यह मुद्रा भगवान विष्णु के कूर्म अवतार की सूचक है। इस मुद्रा में गति होती है । विधि
दोनों हथेलियों को स्वयं की ओर अभिमुख करें, तर्जनी, मध्यमा, कनिष्ठिका और अंगूठे को ऊपर की ओर फैलायें तथा अनामिका को हथेली के भीतर मोड़ने पर कूर्मावतार मुद्रा बनती है। 4
कूर्मावतार मुद्रा
लाभ
चक्र - मूलाधार, स्वाधिष्ठान एवं आज्ञा चक्र तत्त्व- पृथ्वी, जल एवं आकाश तत्त्व ग्रन्थि - प्रजनन एवं पीयूष ग्रन्थि केन्द्र - शक्ति, स्वास्थ्य एवं दर्शन केन्द्र विशेष प्रभावित अंग - मेरूदण्ड, गुर्दे, मल-मूत्र अंग, प्रजनन अंग, निचला मस्तिष्क, स्नायु तंत्र।