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294... नाट्य मुद्राओं का एक मनोवैज्ञानिक अनुशीलन
3. कृष्णावतार मुद्रा
भगवान विष्णु आठवें अवतार के समय यदुवंशी वासुदेव की पट्टरानी देवकी के गर्भ से उत्पन्न हुए थे। श्रीकृष्ण देवकी के आठवें पुत्र थे। मान्यता है कि कंस को मारने के लिए उन्होंने यह अवतार लिया था और कई लीलाएँ की। ___यह मुद्रा विष्णु के दस अवतारों में से कृष्ण अवतार की सूचक है। यह संयुक्त मुद्रा नाटक आदि में की जाती है। विधि
दायीं हथेली मध्य भाग की ओर अभिमुख रहे, तर्जनी, मध्यमा और अनामिका अंगुलियाँ प्रथम एवं द्वितीय जोड़ पर हथेली की तरफ मुड़ी हुई रहें, अंगूठा अंदर की तरफ फैला हुआ तथा कनिष्ठिका ऊपर की ओर उठी हुई रहे।
बायीं हथेली भी मध्यभाग की ओर अभिमुख रहे। तर्जनी,
कृष्णावतार मुद्रा मध्यमा और अनामिका पहले एवं दूसरे मोड़ पर हथेली की ओर झुकी हुई, अंगूठा और कनिष्ठिका ऊर्ध्व प्रसरित रहने पर कृष्णावतार मुद्रा बनती है।
यह मुद्रा कंधों के स्तर पर धारण की जाती है।
लाभ
चक्र- अनाहत, मणिपुर एवं सहस्रार चक्र तत्त्व- वायु, अग्नि एवं आकाश तत्त्व अन्थि- थायमस, एड्रीनल, पैन्क्रियाज एवं पिनियल ग्रन्थि केन्द्र-आनंद, तैजस एवं ज्योति केन्द्र विशेष प्रभावित अंग-हृदय, फेफड़ें,