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भारतीय परम्परा में प्रचलित मुद्राओं की विधि एवं उद्देश्य......293
2. कल्कि अवतार मुद्रा
भगवान विष्णु का अंतिम दसवाँ अवतार कल्कि अवतार माना जाता है। इस अवतार काल में उन्होंने शत्रुओं का उद्धार किया तथा दुष्टों का हनन किया था। यह नाट्य मुद्रा दोनों हाथों से की जाती है। विधि
दोनों हथेलियों को स्वयं की ओर अभिमुख करें, दायीं हथेली को ऊर्ध्व प्रसरित करते हुए किंचित झुकायें तथा हथेली को शिथिल रखें।
बायीं हथेली की अनामिका को हथेली के अंदर मोड़ते हुए शेष अंगुलियों को ऊपर की ओर करने पर कल्कि अवतार मुद्रा बनती है।
कल्कि अवतार मुद्रा लाभ
चक्र- स्वाधिष्ठान एवं सहस्रार चक्र तत्त्व- जल एवं आकाश तत्त्व ग्रन्थि- प्रजनन एवं पिनियल ग्रन्थि केन्द्र- स्वास्थ्य एवं ज्योति केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- मल-मूत्र अंग, प्रजनन अंग, गुर्दे, आँख एवं ऊपरी मस्तिष्क।