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भारतीय परम्परा में प्रचलित मुद्राओं की विधि एवं उद्देश्य......289 10. भर्तरि-भ्रातृ मुद्रा
यह मुद्रा ग्यारह मुद्राओं में से एक है जो साला, देवर आदि का रिश्ता दर्शाती है। नाटक-नृत्य आदि में यह मुद्रा कलाकारों के द्वारा की जाती है।
विधि
__ इस मुद्रा में दायी हथेली को बाहर की ओर अभिमुख करें, तर्जनी एवं मध्यमा के बीच अन्तर रखते हुए उन्हें ऊपर की तरफ सीधी रखें, अंगूठे को भी सीधा रखें तथा अनामिका एवं कनिष्ठिका को हथेली की ओर झुकाये हुए
रखें।
बायीं हथेली को मध्य भाग में रखते हुए अंगुलियों को
भर्तरि क्षात मुद्रा मुट्ठी के रूप में बांध दें तथा अंगूठे को ऊपर की ओर करने पर भर्तरि भ्रातृ मुद्रा बनती है।10 लाभ
चक्र- मूलाधार, आज्ञा एवं स्वाधिष्ठान चक्र तत्त्व- पृथ्वी, जल एवं आकाश तत्त्व प्रन्थि- प्रजनन एवं पीयूष ग्रन्थि केन्द्र- शक्ति, दर्शन एवं स्वास्थ्य केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- मेरूदण्ड, गुर्दे, निचला मस्तिष्क, स्नायु तंत्र, मलमूत्र अंग, प्रजनन अंग, गुर्दे आदि।