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________________ 288... नाट्य मुद्राओं का एक मनोवैज्ञानिक अनुशीलन 9. स्नुष् मुद्रा स्नुष् का अर्थ होता है बहु। यह सम्बन्ध ज्ञापित करने वाली मुद्राओं में से एक है। इस मुद्रा के माध्यम से बहू के सम्बन्ध तथा उसके कर्तव्यों को दर्शाया जाता है। विधि दायी हथेली को पेट के निचले हिस्से पर रखें। फिर अंगुलियाँ और अंगूठे को एक साथ मध्यभाग की तरफ फैलायें। बायीं हथेली को मध्यभाग की तरफ रखते हुए अंगठा और अनामिका के अग्रभाग को मिलायें, तर्जनी और मध्यमा को हल्की सी पृथक करते हुए सीधी रखें तथा कनिष्ठिका को किंचित झुकाने पर स्नुष् मुद्रा बनती है। लाभ स्नुष् मुद्रा चक्र- आज्ञा एवं सहस्रार चक्र तत्त्व- आकाश तत्त्व ग्रन्थि- पीयूष एवं पिनियल ग्रन्थि केन्द्र- दर्शन एवं ज्योति केन्द्र विशेष प्रभावित अंगमस्तिष्क, आँख एवं स्नायु तंत्र।
SR No.006253
Book TitleNatya Mudrao Ka Manovaigyanik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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