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भारतीय परम्परा में प्रचलित मुद्राओं की विधि एवं उद्देश्य 287
8. श्वसुर मुद्रा
यह मुद्रा नाटक आदि में पारिवारिक सम्बन्ध बताने के उद्देश्य से की जाती है। इस मुद्रा के द्वारा ससुर के सम्बन्ध को दर्शाया जाता है। यह संयुक्त मुद्रा है इसलिए इसे दोनों हाथों से करते हैं।
विधि
दायीं हथेली मध्य भाग की तरफ रहें, अंगुलियाँ मुट्ठी रूप में गुंथी हुई और अंगूठा ऊर्ध्वाभिमुख रहे।
बायीं हथेली उदर के निचले हिस्से पर रहे तथा अंगुलियाँ और अंगूठा मध्यभाग की ओर फैले हुए रहने पर श्वसुर मुद्रा बनती है ।
श्वसुर मुद्रा
चक्र
मणिपुर एवं आज्ञा चक्र तत्त्व- अग्नि एवं आकाश तत्त्व ग्रन्थिएड्रीनल, पैन्क्रियाज एवं पीयूष ग्रन्थि केन्द्र- तैजस एवं दर्शन केन्द्र विशेष प्रभावित अंग - यकृत, तिल्ली, आँतें, नाड़ी संस्थान, पाचन संस्थान, स्नायु तंत्र एवं निचला मस्तिष्क ।
लाभ