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भारतीय परम्परा में प्रचलित मुद्राओं की विधि एवं उद्देश्य.......285 6. सपत्नी मुद्रा
इस मुद्रा के माध्यम से पत्नी, सौत का सम्बन्ध अभिव्यक्त किया जाता है। इस मुद्रा में गति होती है तथा यह दोनों हाथों से सम्पन्न की जाती है। विधि
दोनों हाथों की तर्जनी और अंगूठों को सीधा रखें, शेष अंगुलियों को हथेली के भीतर मोड़ दें। तदनन्तर दायीं हथेली को अधोमुख रखते हुए उसकी तर्जनी अंगुली से बायीं तर्जनी का स्पर्श करने पर सपत्नी मुद्रा बनती है।
इस मुद्रा में दोनों हाथ उदर के निम्न भाग में रखे जाते हैं।
सपत्नी मुद्रा
लाभ
चक्र- मणिपुर एवं अनाहत चक्र तत्त्व- अग्नि एवं वायु तत्त्व ग्रन्थिएड्रीनल, पैन्क्रियाज एवं थायमस ग्रन्थि केन्द्र- तैजस एवं आनंद केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- यकृत, तिल्ली, आँतें, नाड़ी तंत्र, पाचन तंत्र, रक्त संचरण तंत्र, हृदय, फेफड़ें एवं भुजाएं।