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284... नाट्य मुद्राओं का एक मनोवैज्ञानिक अनुशीलन 5. पितृ मुद्रा
नाटक परम्परा की यह मुद्रा युग्म पाणि से वहन की जाती है। इस मुद्रा के माध्यम से पित कर्तव्यों को दर्शाया जाता है। विधि
बायीं हथेली सामने की तरफ, अंगुलियाँ शिथिल रूप में एक साथ ऊपर की ओर फैली हुई और अंगूठा अंगुलियों से दूर रहे। दायीं हथेली मध्य भाग में, अंगुलियाँ हथेली के भीतर मुट्ठी रूप में और अंगूठा ऊर्ध्व प्रसरित रहने पर पितृ मुद्रा बनती है।
पित मुद्रा लाभ
चक्र- मूलाधार, आज्ञा एवं अनाहत चक्र तत्त्व- पृथ्वी, आकाश एवं वायु तत्त्व ग्रन्थि- प्रजनन, पीयूष एवं थायमस ग्रन्थि केन्द्र- शक्ति, दर्शन एवं आनंद केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- मेरूदण्ड, गुर्दे, पैर, निचला मस्तिष्क, स्नायु तंत्र, रक्त संचरण तंत्र, हृदय, फेफड़ें, भुजाएं।