________________
85. वैश्य मुद्रा
यह मुद्रा चार जातियों में से वैश्य जाति को संबोधित करती है।
विधि
भारतीय परम्परा में प्रचलित मुद्राओं की विधि एवं उद्देश्य... ...277
दायीं हथेली अन्दर की तरफ, तर्जनी और मध्यमा मुड़ी हुई और उनके अग्रभाग अंगूठे से स्पर्श करते हुए रहें तथा अनामिका और कनिष्ठिका भी हथेली की तरफ मुड़ी हुई रहें ।
बायीं हथेली स्वयं की तरफ, अंगूठे का प्रथम पोर तर्जनी से स्पर्श करता हुआ और शेष अंगुलियाँ पृथक्-पृथक् रूप से सीधी रहने पर वैश्य मुद्रा बनती है। 71
वैश्य मुद्रा
चक्र- सहस्रार एवं आज्ञा चक्र तत्त्व- आकाश तत्त्व ग्रन्थि- पिनियल एवं पीयूष ग्रन्थि केन्द्र - ज्योति एवं दर्शन केन्द्र विशेष प्रभावित अंगमस्तिष्क, स्नायु तंत्र एवं आंख ।
लाभ