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274... नाट्य मुद्राओं का एक मनोवैज्ञानिक अनुशीलन 82. त्रिज्ञान मुद्रा ___ यहाँ त्रिज्ञान शब्द तीन लोकों का ज्ञान अथवा त्रैकालिक ज्ञान का वाचक है। यह नाट्य मुद्रा दोनों हाथों में समान रूप से की जाती है। विधि
दोनों हथेलियों को छाती के स्तर पर धारण करें, तदनन्तर अंगुलियों और अंगूठों को शिथिल रूप से अपनी-अपनी दिशा की तरफ फैलायें तथा किंचित झुकाने पर त्रिज्ञान मुद्रा बनती है।68
प्रिक्षान मुद्रा लाभ
चक्र- स्वाधिष्ठान, सहस्रार एवं आज्ञा चक्र तत्त्व- जल एवं आकाश तत्त्व ग्रन्थि- प्रजनन,पीयूष एवं पिनियल ग्रन्थि केन्द्र- स्वास्थ्य, ज्योति एवं दर्शन केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- मल-मूत्र अंग, प्रजनन अंग, गुर्दे, मस्तिष्क, आँख एवं स्नायु तंत्र।