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भारतीय परम्परा में प्रचलित मुद्राओं की विधि एवं उद्देश्य... ... 271 79. सूर्य मुद्रा
भारतीय नाट्य कला में इस मुद्रा का अप्रतिम महत्त्व है। यह संयुक्त मुद्रा नौ ग्रहों में से सूर्य ग्रह की सूचक है। वैज्ञानिकों के अनुसार सूर्य अंतरिक्ष का सबसे बड़ा ज्वलंत पिंड है जिससे पृथ्वी आदि ग्रहों को गर्मी और रोशनी मिलती है तथा मंगल आदि सभी ग्रह इसकी परिक्रमा करते हैं।
सूर्य की गणना मुख्य देवताओं में की जाती है । प्रायः सभी परम्पराओं में इसकी उपासना होती है।
विधि
दायीं हथेली को मध्यभाग की तरफ रखें। फिर मध्यमा, अनामिका और कनिष्ठिका हथेली में मुड़ी हुई, अंगूठा मध्यमा के प्रथम पोर को स्पर्श करता हुआ तथा तर्जनी अंगूठे के ऊपर मुड़ी हुई रहें ।
बायीं हथेली
ऊपर की तरफ, अंगुलियाँ और अंगूठा तना हुआ एवं कड़क अवस्था में रहने पर सूर्य मुद्रा बनती है। इसमें
कनिष्ठिका और
हथेली में 90° कोण की दूरी रहती है। 65
लाभ
चक्र
मणिपुर एवं सहस्रार चक्र
सूर्य मुद्रा
तत्त्व- अग्नि एवं आकाश तत्त्व ग्रन्थि - एड्रीनल, पैन्क्रियाज एवं पिनियल ग्रन्थि केन्द्र - तैजस एवं ज्योति केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- नाड़ी संस्थान, पाचन संस्थान, यकृत, तिल्ली, आँतें, आंख एवं ऊपरी मस्तिष्क ।