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भारतीय परम्परा में प्रचलित मुद्राओं की विधि एवं उद्देश्य......257 तरफ किंचित झुकाने पर राहु मुद्रा बनती है।50 लाभ
चक्र- मूलाधार एवं स्वाधिष्ठान चक्र तत्त्व- पृथ्वी एवं जल तत्त्व प्रन्थि- प्रजनन ग्रन्थि केन्द्र- शक्ति एवं स्वास्थ्य केन्द्र विशेष प्रभावित अंगमेरूदण्ड, गुर्दे, मल-मूत्र अंग, प्रजनन अंग। 65. रावण मुद्रा
नाट्य परम्परा में इस मुद्रा का अत्यधिक महत्त्व है। यह संयुक्त मुद्रा राक्षस रावण की सूचक है। वह प्रसिद्ध शासकों
और योद्धाओं में से एक ऐसा अद्वितीय पुरुष था, जिसने नारी की इच्छा के विरुद्ध अनाचार का सेवन नहीं किया।
इसे दशानन भी कहा जाता है क्योंकि इसके दस मस्तक थे।
रावण मुद्रा विधि
दोनों हथेलियाँ छाती के स्तर पर अपनी तरफ रहें, अंगुलियाँ और अंगूठे अलग-अलग ऊर्ध्व प्रसरित रहें तथा हाथ कंधों के पार्श्व में रहें, तब रावण मुद्रा बनती है।51 लाभ
चक्र- मणिपुर, आज्ञा एवं मूलाधार चक्र तत्त्व- अग्नि, आकाश एवं पृथ्वी तत्त्व ग्रन्थि- एड्रीनल, पैन्क्रियाज, पीयूष एवं प्रजनन ग्रन्थि केन्द्र
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