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256... नाट्य मुद्राओं का एक मनोवैज्ञानिक अनुशीलन हल्के से पृथक करें तथा अंगूठे के अग्रभाग से अनामिका अंगुली के निचले हिस्से को स्पर्शित करने पर पुन्नाग मुद्रा बनती है।
यह मुद्रा पताका मुद्रा और चतुर मुद्रा को सम्मिलित कर बनाई गयी है।49 लाभ
चक्र- मणिपुर एवं स्वाधिष्ठान चक्र तत्त्व- अग्नि एवं जल तत्त्व प्रन्थि- एड्रीनल, पैन्क्रियाज एवं प्रजनन ग्रन्थि केन्द्र- तैजस एवं स्वास्थ्य केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- यकृत, तिल्ली, आँतें, नाड़ी संस्थान, पाचन संस्थान, मल-मूत्र अंग, प्रजनन अंग, गुर्दे। 64. राहु मुद्रा
नाटक आदि में यह मुद्रा कलाकारों द्वारा दोनों हाथों से धारण की जाती है।
नौ ग्रहों में से एक ग्रह का नाम राहु है। इस मुद्रा से राहु ग्रह एवं चन्द्रमा की बढ़ती हुई कलाओं का बोध किया जाता है। विधि ___दायीं हथेली को अपनी तरफ करते हुए तर्जनी और अंगूठे को ऊपर उठायें तथा मध्यमा, अनामिका और कनिष्ठिका को हथेली में मोड़े हुए रखें।
बायीं हथेली को बाहर की तरफ रखें, अंगूठा तर्जनी के निचले हिस्से के विपरीत रहें तथा तर्जनी, मध्यमा, अनामिका और कनिष्ठिका को हथेली
राहु मुद्रा