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भारतीय परम्परा में प्रचलित मुद्राओं की विधि एवं उद्देश्य 255 हुए रहें तथा हाथों को कलाई पर Cross करते हुए रखने पर पूग मुद्रा बनती 148
लाभ
चक्र- स्वाधिष्ठान, आज्ञा एवं विशुद्धि चक्र तत्त्व- जल, आकाश एवं वायु तत्त्व ग्रन्थि - प्रजनन, पीयूष, थायरॉइड एवं पेराथायरॉइड ग्रन्थि केन्द्रस्वास्थ्य, दर्शन एवं विशुद्धि केन्द्र विशेष प्रभावित अंग - मल-मूत्र अंग, प्रजनन अंग, गुर्दे, निचला मस्तिष्क, स्नायु तंत्र, नाक, कान, गला, मुँह, स्वर यंत्र ।
63. पुन्नाग मुद्रा
पुन्नाग एक श्रेष्ठ वृक्ष का नाम है। यह दक्षिण में अधिक पाया जाता है। समुद्र तट की रेतीली भूमि में जहाँ अन्य कोई पेड़ नहीं रहता वहाँ यह अपने फल-फूल की बहार दिखाता है । वैद्यक में इसे मधुर, शीतल, सुगंधित और पित्तनाशक माना गया है।
नाट्य परम्परा की
यह मुद्रा पुन्नाग वृक्ष की सूचक मानी गयी है।
विधि
दायीं हथेली को
छाती के स्तर पर सामने की ओर रखें, अंगुलियों और अंगूठे को शिथिलता से ऊपर की तरफ फैलायें और किंचित झुकायें। बायीं हथेली को
भी बाहर की तरफ रखें, अंगुलियों को एक साथ ऊर्ध्व प्रसरित करें, कनिष्ठिका को
पुभाग मुद्रा