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भारतीय परम्परा में प्रचलित मुद्राओं की विधि एवं उद्देश्य......253 60. पार्वती मुद्रा
हिमालय पर्वत की कन्या, शिव की अर्धाङ्गिनी देवी पार्वती कहलाती है। यह देवी गौरी, दुर्गा, शिवा, भवानी, आदि अनेक नामों से पूजी जाती है। नाट्य परम्परा की यह मुद्रा पार्वती देवी की प्रतीक है। इस मुद्रा को दोनों हाथों से सम्पादित करते हैं। विधि
दायी हथेली बाहर की तरफ, अंगुलियाँ शिथिल रूप में एक साथ नीचे की ओर फैली हुई और अंगूठा अंगुलियों से दूर रहे।
बायीं हथेली सामने की तरफ, अंगुलियाँ एक साथ ऊपर की ओर फैली हुई तथा अंगूठा अगुलियों से दूर रहने पर पार्वती मुद्रा बनती है।47
लाभ
पार्वती मुद्रा चक्र- अनाहत एवं सहस्रार चक्र तत्त्व- वायु एवं आकाश तत्त्व ग्रन्थिथायमस एवं पिनियल ग्रन्थि केन्द्र- आनंद एवं ज्योति केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- हृदय, फेफड़ें, भुजाएँ, रक्त संचार प्रणाली, आँख एवं ऊपरी मस्तिष्क।