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252... नाट्य मुद्राओं का एक मनोवैज्ञानिक अनुशीलन 59. पारीजात मुद्रा
एक देव वृक्ष जो स्वर्ग लोक में इन्द्र के नंदन वन में है। इस वृक्ष के फूल अपने नाम के अनुरूप अनेक तरह की गंध प्रसरित कर सकते हैं।
इसकी भिन्न-भिन्न शाखाओं में अनेक प्रकार के रत्न लगते हैं। यह वृक्ष समुद्र मंथन के समय निकला था तथा विशेष गुणों से युक्त है। यह मुद्रा उसी पारीजात वृक्ष की सूचक है।
इस नाट्य मुद्रा को त्रिज्ञान मुद्रा के समान जानना चाहिये।
पारीजात मुद्रा लाभ
चक्र- मणिपुर, अनाहत एवं सहस्रार चक्र तत्त्व- अग्नि, वायु एवं आकाश तत्त्व केन्द्र- तैजस, आनंद एवं ज्ञान केन्द्र प्रन्थि- एड्रीनल, पैन्क्रियाज, थायमस एवं पिनियल ग्रन्थि विशेष प्रभावित अंग- पाचन तंत्र, यकृत, तिल्ली, नाड़ी तंत्र, आँते, हृदय, फेफड़ें, भुजाएँ, रक्त संचार प्रणाली, ऊपरी मस्तिष्क एवं आँखें।