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250... नाट्य मुद्राओं का एक मनोवैज्ञानिक अनुशीलन 57. व्याली मुद्रा
यह नाट्य मुद्रा अपने नाम के अनुसार व्याली नामक पक्षी की सूचक है। विधि
दायी हथेली बाहर की तरफ, तर्जनी और मध्यमा हल्की सी मुड़ी हुई, अनामिका का अग्रभाग अंगूठे के मूल सतह से स्पर्श करता हुआ और कनिष्ठिका किंचित मुड़ी हुई रहने पर व्याली मुद्रा बनती है।45
व्याली मुद्रा
लाभ
चक्र- मणिपुर एवं स्वाधिष्ठान चक्र तत्त्व- अग्नि एवं जल तत्त्व ग्रन्थि- एड्रीनल, पैन्क्रियाज एवं प्रजनन ग्रन्थि केन्द्र- तैजस एवं स्वास्थ्य केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- नाड़ी संस्थान, पाचन संस्थान, यकृत, तिल्ली, आँते, मल-मूत्र अंग, प्रजनन अंग, गुर्दे।