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244... नाट्य मुद्राओं का एक मनोवैज्ञानिक अनुशीलन
नाटक आदि में इस मुद्रा के द्वारा काम वासना, प्रेम आदि दर्शाया जाता है। विधि
दायां हाथ मध्य भाग की ओर, तर्जनी एवं मध्यमा का अग्रभाग अंगूठे के अग्रभाग से स्पर्श करता हुआ तथा अनामिका और कनिष्ठिका हथेली के भीतर मुड़ी हुई रहें।
बायां हाथ मध्यभाग में, अंगुलियाँ मुट्ठी रूप में तथा अंगूठा ऊर्ध्वाभिमुख रहने पर मन्मथ मुद्रा बनती है।39
मन्मथ मुद्रा लाभ
चक्र- मणिपुर, स्वाधिष्ठान एवं आज्ञा चक्र तत्त्व- अग्नि, जल एवं आकाश तत्त्व प्रन्थि- एड्रीनल, पैन्क्रियाज, प्रजनन एवं पिनियल ग्रन्थि केन्द्रतैजस, स्वास्थ्य एवं दर्शन केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- नाड़ी तंत्र, पाचन तंत्र,