________________
240... नाट्य मुद्राओं का एक मनोवैज्ञानिक अनुशीलन
47. लक्ष्मी मुद्रा
हिन्दु परम्परा की प्रसिद्ध देवी लक्ष्मी, विष्णु की पत्नी और धन की अधिष्ठात्री मानी जाती है।
पुराणों में इसके विषय में अनेक कथाएँ मिलती है। कहते हैं समुद्र मंथन के समय चौदह रत्न
निकले थे उनमें से
यह एक है। दीपावली, धनतेरस
के दिन इनकी सर्वत्र
पूजा
की जाती है।
यह नृत्य मुद्रा लक्ष्मी देवी की सूचक है।
विधि
दोनों हथेलियों को एक-दूसरे से विमुख मध्यभाग पर
रखें। फिर मध्यमा,
और
117
अनामिका
लक्ष्मी
मुद्रा
कनिष्ठिका अंगुलियों को हथेली की तरफ मोड़ें, अंगूठों को मध्यमा के प्रथम पोर पर रखें तथा तर्जनी को उसके ऊपर से घुमाकर मोड़ने पर लक्ष्मी मुद्रा बनती है । यह मुद्रा कंधो के स्तर पर धारण की जाती है। 35
लाभ
चक्र - अनाहत, मणिपुर एवं मूलाधार चक्र तत्त्व - वायु, अग्नि एवं पृथ्वी तत्त्व ग्रन्थि - थायमस, एड्रीनल, पैन्क्रियाज एवं प्रजनन ग्रन्थि केन्द्रआनंद, तैजस एवं शक्ति केन्द्र विशेष प्रभावित अंग - हृदय, फेफड़ें, भुजाएँ, रक्तसंचार प्रणाली, नाड़ी संस्थान, पाचन संस्थान, यकृत, तिल्ली, आँतें, मेरूदण्ड, गुर्दे आदि ।