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238... नाट्य मुद्राओं का एक मनोवैज्ञानिक अनुशीलन
एवं दर्शन केन्द्र विशेष प्रभावित अंग - मेरूदण्ड, गुर्दे, पाँव, हृदय, फेफड़ें, भुजाएँ, रक्तसंचार प्रणाली, स्नायु तंत्र एवं निचला मस्तिष्क ।
45. कुरूवक मुद्रा
नाटक आदि में प्रयुक्त यह मुद्रा कुरूवक वृक्ष की सूचक है।
विधि
दायीं हथेली सामने की ओर छाती के स्तर पर धारण की हुई, अनामिका को छोड़कर शेष अंगुलियाँ ऊपर की ओर फैली हुई, अनामिका नीचे की ओर मुड़ी हुई रहे।
हथेली
बायीं सामने की ओर, तर्जनी और मध्यमा
ऊपर की तरफ फैली
हुई हल्की सी दूरी पर, कनिष्ठिका झुकी हुई तथा अंगूठे का अग्रभाग अनामिका के
अग्रभाग से स्पर्श
करता हुआ रहने पर कुरूवक मुद्रा बनती
है। अ
इसमें बायीं
हथेली
अनामिका
तरफ मुड़ी हुई रहती है।
लाभ
कुरुवक मुद्रा
चक्र - मणिपुर एवं आज्ञा चक्र तत्त्व- अग्नि एवं आकाश तत्त्व ग्रन्थि - एड्रीनल पैन्क्रियाज एवं पीयूष ग्रन्थि केन्द्र- तैजस केन्द्र एवं दर्शन केन्द्र विशेष प्रभावित अंग - यकृत, तिल्ली, आँतें, नाड़ी तंत्र, पाचन तंत्र, स्नायु तंत्र, निचला मस्तिष्क ।
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