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भारतीय परम्परा में प्रचलित मुद्राओं की विधि एवं उद्देश्य......237 लाभ
चक्र- मणिपुर एवं आज्ञा चक्र तत्त्व- अग्नि एवं आकाश तत्त्व ग्रन्थिएड्रीनल, पैन्क्रियाज एवं पीयूष ग्रन्थि केन्द्र- तैजस एवं दर्शन केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- यकृत, तिल्ली, आँतें, नाड़ी तंत्र, पाचन तंत्र, स्नायु तंत्र, निचला मस्तिष्क आदि। 44. कूर्म मुद्रा
कूर्म अर्थात कच्छप। कछुएँ के ऊपर ढाल की तरह कड़ी खोपड़ी होती है। इस खोपड़ी के नीचे वह अपना सिर और हाथ-पैर सिकोड़ लेता है अत: इन्द्रिय गोपन के लिए कूर्म का उदाहरण दिया
जाता है।
यह मुद्रा दोनों हाथों से की जाती है तथा भगवान विष्णु के कच्छप अवतार की सूचक है। विधि
दोनों हाथों की कनिष्ठिका और अंगूठों को बाहर की तरफ फैलाते हुए शेष अंगुलियों की मुट्ठी बांधे। फिर मुट्ठी रूप में अवस्थित दायें
कूर्म मुद्रा हाथ को बायें हाथ पर रखने से कूर्म मुद्रा बनती है।
इसमें कनिष्ठिका और अंगूठे परस्पर में संयुक्त रहते हैं।32 लाभ
चक्र- मूलाधार, अनाहत एवं आज्ञा चक्र तत्त्व- पृथ्वी, वायु एवं आकाश तत्त्व प्रन्थि- प्रजनन, थायमस एवं पीयूष ग्रन्थि केन्द्र- शक्ति, आनंद