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________________ 236... नाट्य मुद्राओं का एक मनोवैज्ञानिक अनुशीलन 43. क्षत्रिय मुद्रा हिन्दुओं के चार वर्गों में से दूसरा वर्ण क्षत्रिय कहलाता है। क्षत्रिय का मुख्य कार्य देश का शासन और शत्रुओं से उसकी रक्षा करना है। मनु के अनुसार इस वर्ण जाति का कर्तव्य वेदाध्ययन, प्रजापालन, दान और यज्ञ आदि करना है। पुराणों के अनुसार इनके दो वंश थे चन्द्र और सूर्य। वर्तमान में कई भेद मिलते हैं। प्रायः इन्हें ठाकुर कहा जाता है। क्षत्रियों के सम्बन्ध में एक मान्यता यह भी है कि सष्टि निर्माण के समय यह ब्रह्मा की भुजाओं से उत्पन्न हुए थे। यह नाट्य मुद्रा क्षत्रिय जाति एवं उनके वीरता और पराक्रम की सूचक है। क्षत्रिय मुद्रा इस मुद्रा में गति होती है। विधि इस मुद्रा को बनाते समय दायीं हथेली मध्यभाग की तरफ रखें, अंगुलियों को मुट्ठी रूप में बाँध दें और अंगूठे को ऊपर की तरफ प्रसरित करें। ___बाएं हाथ को भी मध्यभाग की तरफ रखें, अंगुलियों को मुट्ठी रूप बनाते हुए अंगूठे को उन्मुख रखने पर क्षत्रिय मुद्रा बनती है। इसमें बायां हाथ आगेपीछे होता रहता है।31 DIA
SR No.006253
Book TitleNatya Mudrao Ka Manovaigyanik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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