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भारतीय परम्परा में प्रचलित मुद्राओं की विधि एवं उद्देश्य......233 30. अर्घ मुद्रा
इस मुद्रा को अक्क-इन मुद्रा के समान माना गया है। जल, दूध, कुशान्त, दही, सरसों, तंदुल और जव को मिश्रित कर देवी-देवता को अर्पित करना अर्घ कहलाता है। इस मुद्रा के द्वारा समागत देवों को जल आदि अर्पण किया जाता है और भीतर से स्वयं की अशुद्धियों का निवारण करते हैं। 31. आश्चर्य मुद्रा
यह विस्मय मुद्रा का ही एक प्रकारान्तर है। इस मुद्रा की अभिव्यक्ति विस्मय के सन्दर्भ में की जाती होगी। 32. अश्वत्थ मुद्रा
यहाँ अश्वत्थ शब्द का अभिप्राय पीपल नामक वृक्ष से है। अत: यह मुद्रा पीपल वृक्ष की सूचक होनी चाहिए। मुद्रा स्वरूप के अनुसार यह मुद्रा अलपद्म मुद्रा के समान है। 33. भागीरथ मुद्रा ____ गंगा की एक धारा जो बंगाल में बहती है वह भागीरथ कहलाती है। सूर्यवंशी राजा दिलीप का पुत्र, जिसने कठिन तपस्या द्वारा गंगा को धरती पर लाया था। यह मुद्रा भागीरथ की सूचक मुद्रा ज्ञात होती है। 34. डमरू मुद्रा
चमड़े से बना हुआ एक छोटा बाजा, जो मध्यभाग में पतला होता है और हिलाने पर उसमें लगी घंटियों से बजता है। यह शिवजी के द्वारा धारण किया गया है तथा मदारियों द्वारा बंदर, भालू आदि जानवरों को नचाने के लिए भी उपयोग में आता है। • इस मुद्रा के द्वारा संभवत: शिव स्वरूप की अभिव्यक्ति की जाती है। 35. दान मुद्रा
देने की क्रिया, दी गई वस्तु या दयावश किसी को कोई वस्तु प्रदान करना दान कहलाता है।
यह मुद्रा दान देने अथवा किसी दानवीर को सूचित करती है। इस मुद्रा की विधि वरदमुद्रा के समान है और उसी का नामान्तर है।