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234... नाट्य मुद्राओं का एक मनोवैज्ञानिक अनुशीलन
36. दिलीप मुद्रा
इक्ष्वाकु वंश के प्रसिद्ध राजा, जिन्होंने नंदिनी नामक गाय को प्रसन्न करके पुत्र प्राप्त किया था।
यह मुद्रा उस राजा दिलीप के जीवन चरित्र का दिग्दर्शन करवाती है तथा पताका मुद्रा के समान है।
37. दीप मुद्रा
दीप अर्थात दीपक, रोशनी, चिराग । यह मुद्रा तो-म्यो- इन् मुद्रा के समान है। इस मुद्रा के द्वारा अंधेरे में रोशनी के भाव, पूजा आदि में दीपक की आरती के भाव या दीपक पूजा के भाव व्यक्त किये जा सकते हैं।
38. गंगा मुद्रा
भारत की प्रसिद्ध और पवित्र नदी, जिसको भागीरथ ने तपस्या के द्वारा धरती पर उतारा था, ऐसी मान्यता है । कहते हैं कि गंगा नदी तीनों लोकों में हैं तथा काशी, प्रयाग आदि कई प्रधान तीर्थ इस नदी के किनारे हैं।
संभवत: गंगा नदी या नदी भाव को दर्शाने हेतु यह मुद्रा की जाती है । 39. हरिश्चन्द्र मुद्रा
यह मुद्रा त्रेतायुग के सूर्यवंशीय 24वें राजा, जो त्रिशंकु के पुत्र थे तथा अपनी उदारता और सत्यवादिता के लिए प्रसिद्ध थे, ऐसे हरिश्चन्द्र से सम्बन्धित है।
नाटक-नृत्य के दरम्यान यह मुद्रा राजा हरिश्चन्द्र के जीवन सौन्दर्य को दिखाने के लिए की जाती होगी।
40. कृष्ण मृग मुद्रा
हिन्दी बृहद् कोश के अनुसार कृष्णसार मृग, काला हिरन, काले धब्बे वाला हिरन कृष्णमृग कहलाता है।
यह मुद्रा कृष्ण मृग की सूचक है।
क्रोध
मुद्रा
चित्त का तीव्र उद्वेग, जो किसी अनुचित कार्य को होते हुए देखकर अथवा इच्छापूर्ति न होने पर उत्पन्न होता है, क्रोध कहलाता है।
नाटक आदि में इस मुद्रा के द्वारा क्रोध भाव को दर्शाया जाता है।
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