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भारतीय परम्परा में प्रचलित मुद्राओं की विधि एवं उद्देश्य 231
अंग - हृदय, फेफड़ें, भुजाएँ, रक्त संचार प्रणाली, स्नायु तंत्र, निचला मस्तिष्क ।
28. केतु मुद्रा
यह मुद्रा नवग्रहों में से चन्द्र की घटती हुई कलाओं को दर्शाती है तथा नाटक-नृत्यादि में उभय हाथों से की जाती है।
विधि
दायीं हथेली को
भीतर की ओर
अभिमुख करें, तर्जनी, मध्यमा और
अंगूठे को ऊपर की ओर प्रसरित करें तथा
और
अनामिका
कनिष्ठिका को हथेली की तरफ झुकायें।
हथेली को
सामने की ओर अभिमुख करें, तर्जनी और अंगूठे को
ऊर्ध्वमुख करें तथा मध्यमा, अनामिका
केतु मुद्रा
और कनिष्ठिका को हथेली के अन्दर मोड़ने पर केतु मुद्रा बनती है। 28
लाभ
चक्र - मणिपुर एवं स्वाधिष्ठान चक्र तत्त्व- अग्नि एवं जल तत्त्व ग्रन्थि — एड्रीनल, पैन्क्रियाज एवं प्रजनन ग्रन्थि केन्द्र - तैजस एवं स्वास्थ्य केन्द्र विशेष प्रभावित अंग - यकृत, तिल्ली, आँतें, पाचन संस्थान, नाड़ी संस्थान, मल-मूत्र अंग, प्रजनन अंग, गुर्दे ।