SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 289
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भारतीय परम्परा में प्रचलित मुद्राओं की विधि एवं उद्देश्य......223 निचले हिस्से के Oppose में रखें, तर्जनी ऊपर की ओर सीधी रहे, मध्यमा, अनामिका और कनिष्ठिका को हथेली के आधे भाग तक मोड़ें तथा दोनों हाथों को कलाई पर Cross करते हुए रखने पर गर्दभ मुद्रा बनती है।19 लाभ चक्र- मणिपुर एवं अनाहत चक्र तत्त्व- अग्नि एवं वायु तत्त्व ग्रन्थिएड्रीनल, पैन्क्रियाज एवं थायमस ग्रन्थि केन्द्र- तैजस एवं आनंद केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- नाड़ी संस्थान, पाचन संस्थान, यकृत, तिल्ली, आँतें, हृदय, फेफड़ें, भुजाएँ, रक्त संचार प्रणाली। 20. इन्द्र मुद्रा ऐश्वर्यवान्, विभूति सम्पन्न, देवी-देवताओं का राजा इन्द्र कहलाता है। यह संयुक्त मुद्रा नाटक आदि में किसी विशिष्ट देव को सूचित करती है। विधि दोनों हथेलियों को आगे की तरफ करें, तर्जनी, मध्यमा, कनिष्ठिका और अंगूठे को ऊपर की ओर फैलायें, अनामिका को हथेली की तरफ मोड़ें तथा हाथों को कलाई के स्तर पर Cross करते हुए रखने पर इन्द्र मुद्रा बनती है।20 इन्द्र मुद्रा लाभ चक्र- स्वाधिष्ठान एवं सहस्रार चक्र तत्त्व- जल एवं आकाश तत्त्व
SR No.006253
Book TitleNatya Mudrao Ka Manovaigyanik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy